Skip to main content

मिशाल :- बिमला मेघवाल ने अस्पताल के लिए दान दे दी अपनी जमीन


शेखावाटी अंचली के कांवट कस्बे में एक महिला ने गरीबों के लिए अपनी जमीन दे दी। वजह उनका सही और अच्छी जगह इलाज होना। कस्बे की इस महिला को जब पीएचसी की जर्जर हालत के चलते यहां आ रहे मरीजों की हालत पता चली तो उनसे रहा न गया और उन्होंने अपनी पांच बीघा जमीन अस्पताल बनाने के लिए दे दी।
कांवट के निकटवर्ती गांव भादवाड़ी निवासी गरीब परिवार की एक महिला ने सरकारी अस्पताल को अपनी 5 बीघा जमीन दान कर अनूठी मिसाल कायम की है। भादवाड़ी गांव में फिलहाल पीएचसी का संचालन हो रहा है। अस्पताल का भवन काफी जर्जर है, जहां स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं नहीं हैं। खासकर महिलाओं को प्रसव के लिए दूसरे अस्पतालों में जाना पड़ता है। अव्यवस्थाओं की वजह से रात में डॉक्टर भी अस्पताल में नहीं रुकते हैं।

ईंट-भट्टों पर मजदूरी करता है परिवार

55 साल की बिमला देवी के चार बेटे व दो बेटियां हैं। इनके तीन बेटे दूसरे राज्यों में मार्बल का काम करते हैं। ईंट-भट्टों पर मजदूरी करने वाली बिमला फिलहाल नरेगा में काम कर रही है।  

हर किसी ने सराहा

गरीबों की पीड़ा को देखते हुए मेघवाल समुदाय की बिमला देवी पत्नी जगदीश प्रसाद बलाई ने खुद की 5 बीघा जमीन को दान करने का निर्णय लिया। गुरुवार को अस्पताल प्रभारी डॉ. कृष्णकांत शर्मा को बिमला देवी ने ग्रामीणों की मौजूदगी में जमीन का दस्तावेज सौंपा। इस मौके पर ग्राम पंचायत और अस्पताल प्रशासन ने बिमला देवी व पति जगदीश प्रसाद को सम्मानित किया।


Comments

Popular posts from this blog

मेघवालों का गौरवशाली इतिहास यहाँ पढ़े

हमारा अतीत बहुत ही गौरवशाली रहा है । मेघवाल क्षत्रियोत्पन्न हिंदू-धर्म की एक जाति   नहीं   है बल्कि मेघवंश क्षत्रिय वंश रहा है ! हड़प्पा कालीन सभ्यता के उत्खनन में पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हो चुके हैं कि मेघवाल ही पुराप्रागैतिहासिक काल में शासक(क्षत्रिय) थे !   विस्मित न हो , आर्यों नें उन्हें पराजित किया और उनके सब राजसी ठाट-बाट और वैभव छीन लिए । बुरा हो उन आर्यों का , जिन्होंने हमें क्षुद्र-वर्ण में धकेल दिया ! हमारी हीनता की जड़ें हमें हिंदू धर्म में विलीन करने की प्रक्रिया में सन्निहित रही है। इस प्रकार सर्वप्रथम मेघवाल ही क्षत्रिय थे ! मेघवालों के बाद ये तथाकथित ‘ क्षत्रिय ’ अस्तित्व में आए । चूँकि ‘ बाप ही बेटों से बड़ा और महान् होता है ’ अत: हमारे पूर्वज (वर्तमान सन्दर्भ मेंहम ) इन तथाकथित ‘ क्षत्रियों ’ से महान् माने जाएँगे ! अत: समस्त धर्म हमारे ही ‘ वंशजों ’ द्वारा उत्पन्न हुए हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं ! यदि कनिष्क वासुदेव ,  मिनांडर ,  भद्र मेघ ,  शिव मेघ , वासिठ मेघ आदि पुरातात्विक अभिलेखांकन व मुद्राएँ न मिलतीं ,  तो इतनी अत्यल्प ज...

वीर राजाराम कडेला का बलिदान दिवस आज

मारवाड़ का अमर शहीद "मेघवीर "राजाराम जी कडेला मेघवाल पिता मोहणसी जी व माता का नाम केसर जिन्होंने 12 मई 1459 वार शनिवार जोधपुर किले की नींव मे बलिदान दिया| " दियो ब-ितसो राजाराम ,जद मण्डियो मेहराण | उचनीत रै कारणै, ना राख्यो नाम निशाण || ना राख्यो नाम निशाण, जोधाणो बेरंग लागे | ना छतरी ना मूरत ज्यारी, गढ मेहराणे आगे || रणबेंका राठोेैड क्यू , भूल्या थे अहसाण | दियो ब-तीसो राजाराम, जद मण्डियो मेहराण || शेर नर राजाराम मेघवाल भी जोधपुर नरेशो के हित के लिए बलिदान हो गए थे !मोर की पुंछ के आकर !वाले जोधपुर किले की नीव जब सिंध के ब्राह्मण ज्योतिषी गनपत ने राव जोधाजी के हाथ से वि ० स० 1516 में रखवाई गई तब उस नीव में मेघवंशी राजाराम जेठ सुदी 11 शनिवार (इ ० सन 1459 दिनाक 12 मई ) को जीवित चुने गए क्यों की राजपूतो में यह एक विश्वास चला आ रहा था की यदि किले की नीव में कोई जीवित पुरुष गाडा जाये तो वह किला उनके बनाने वालो के अधिकार में सदा अभय रहेगा !इसी विचार से किले की नीव में राजाराम (राजिया )गोत्र कडेला मेघवंशी को जीवित गाडा गया था ! उसके उअपर खजाना और नक्कार खा...

रिख रामदेव इतिहास के आईने से

बाबा रामदेव के लोक साहित्य मे हुऐ भक्त कवियों के तिथिक्रम / समयकाल /अन्तराल को देखियै - जिनके पृणित लोक साहित्य - कथा वाणी /भजन / सायल / महिमा इत्यादी को मुख्य आधार मानकर सैकड़ों साहित्यकार "बाबा रामदेव का इतिहास ओर साहित्य" उजागर करतै जा रहै है --- क्या वे प्रमाण साहित्य पूर्ण है- - न्याय के तराजु मे ? (1) बाबा रामदेव के समकालीन विक्रम सॅवत 14 वी शताब्दी मे ऐसा कोई भक्त कवि नही देखने को मिलता है - जिसके पृणित भजनो मे बाबा रामदेव का कोई इतिहास उजागर होता हो । केवल धारु जी मेघवाल ओर बाई रुपादे का समकालीन लोकसाहित्य जरुर है मगर उसमें बाबा रामदेव के इतिहास की पुर्ण जानकारी नही देखने को मिलती है (2) बाबा रामदेव के समकालीन किसी भी राव भाट चारण इत्यादी कवि ने उनकी कोई महिमा बखान नही की । (3)विक्रम सॅवत 14वी शताब्दी से लेकर 17वी तक कोई ऐसा कोई भक्त कवि इतिहास मे नही देखनै को मिलता है जिन्होंने बाबा रामदेव की कोई महिमा व इतिहास बखाण किया हो । _______________________________________ 17वी शताब्दी के बाद देखो ~ 1722 मे सिद्ध राजुसिह तॅवर हुऐ - मगर उनके भजन बहुत कम है 1729 मे क...