बाबा रामदेव के लोक साहित्य मे हुऐ भक्त कवियों के तिथिक्रम / समयकाल /अन्तराल को देखियै - जिनके पृणित लोक साहित्य - कथा वाणी /भजन / सायल / महिमा इत्यादी को मुख्य आधार मानकर सैकड़ों साहित्यकार "बाबा रामदेव का इतिहास ओर साहित्य" उजागर करतै जा रहै है --- क्या वे प्रमाण साहित्य पूर्ण है- - न्याय के तराजु मे ?
(1) बाबा रामदेव के समकालीन विक्रम सॅवत 14 वी शताब्दी मे ऐसा कोई भक्त कवि नही देखने को मिलता है - जिसके पृणित भजनो मे बाबा रामदेव का कोई इतिहास उजागर होता हो । केवल धारु जी मेघवाल ओर बाई रुपादे का समकालीन लोकसाहित्य जरुर है मगर उसमें बाबा रामदेव के इतिहास की पुर्ण जानकारी नही देखने को मिलती है
(2) बाबा रामदेव के समकालीन किसी भी राव भाट चारण इत्यादी कवि ने उनकी कोई महिमा बखान नही की ।
(3)विक्रम सॅवत 14वी शताब्दी से लेकर 17वी तक कोई ऐसा कोई भक्त कवि इतिहास मे नही देखनै को मिलता है जिन्होंने बाबा रामदेव की कोई महिमा व इतिहास बखाण किया हो ।
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17वी शताब्दी के बाद देखो ~
1722 मे सिद्ध राजुसिह तॅवर हुऐ - मगर उनके भजन बहुत कम है
1729 मे कवि सायर खेम हुऐ जिन्होंने बाबा को केवल साम्प्रदायिक सद्भावना के पावन प्रतीक के रुप मे काव्य छन्द लिखे ।
इसी तरह कॅई भक्त कवियों द्वारा रचित छंदोबद्ध काव्य की हस्तलिखित प्रतियो मे - अबीर चंद , सूरदास , वुदर , जालू , अचल , व महाराजा गजसिहं (बिकानेर ) इत्यादी के प्रमुख है लगभग यै सभी 17 वी शताब्दी के बाद हुऐ ।
विक्रम सॅवत 1745 के बाद भक्त कवि हरजी भाटी हुऐ - उन्होंने अपने भजनों मे बाबा रामदेव का प्रकट होकर उन्है दर्शन देने की बात कही ।
हरजी भाटी के समकालीन ही बीजोजी साणी (गर्गवॅशी) , करणदास जी"जलवाणी" मेघ(गाँव जाजीवाल) , अखजी मेघ ( गाव बेठवासिया ) बुधरदास जी मेघ (मोखेरी) , धेनदास जी , राजुजी तैली (गाँव बागड़ी -सोजत) पण्डित देवायत, साधु सुरदास (डाबड़ी) , मानो जी , रामो जी राव , दलाजी सेठ , जालम दर्जी , रिख राहु जी , इत्यादी कॅई भक्त कवि प्रमुख हुऐ उनकी रचनाओं मे भी बाबा रामदेव द्वारा प्रकट होकर उन्है दर्शन देने का भी जिक्र आता है
1774 मे हीरानॅद माली (सुजानदेसर) - उनके बाद उनके पुत्र देवसी माली भक्त कवि हुऐ । जिनकै भजनो मे भी बाबा रामदेवजी द्वारा साक्षात प्रकट होकर दर्शन देनै की बातें पाई गयी है
1795 के बाद भक्त कवि लिखमो जी माली हुऐ ।
इनके बाद अब तक सैकड़ों लोक कवि हुऐ जिन्होंने अपने अपने मतानुसार बाबा की महिमा गायी
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18 वी शताब्दी के बाद देखो -
18वी शताब्दी के बाद लिखी कुछ हस्तलिखित वारताऐ भी देखने को मिलती है - जिसमे जैसे "वात तॅवरा री " , वात रणसी तुवर री इत्यादी ।
___________ 18वी शताब्दी मे धामट गोत्र के पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा 1897 मे रामदेवरा बावड़ी का निर्माण करवाया गया ।
सॅवत 1985 (सन 1931) मे बिकानेर के महाराजा गॅगासिह जी ने बाबा की समाधि पर भव्य जिर्णोद्धार व पोल इत्यादी का निर्माण करवाया ।
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बाबा रामदेव के इतिहास पर गहन शोधकार्य करने वालो को उपरोक्त ऐतिहासिक महत्वपूर्ण विचारणिय बातै ध्यान मे रखकर ही अपना शोध सम्पन्न करना चाहियै -- ओर इसी आधार पर खड़े होने वाले उन महत्वपूर्ण विचारणिय तत्यो के रहस्य को खुलकर बेनकाब करना चाहियै कि -- आखिर ऐसा क्यों ?
जिन्है आज जन जन की आस्था का केन्द्र माना जाता है उनके इतिहास व लोकसाहित्य मे ऐसे विचारणीय बिन्दू अनदेखे नही कियै जा सकतै है - कि
(1) बाबा रामदेव के समकालीन 14वी शताब्दी मे किसी भी इतिहासकार ने रामदेवजी के विषय मे क्यों नही लिखा ? या यु कहै कि - बाबा रामदेव के समकालीन साहित्य मे उनका कोई स्पष्ट इतिहास देखने को क्यो नही मिलता ?
(2) उनके समकालीन कोई सवर्ण भक्त कवियों की कोई ऐसी काव्य रचना कथा वाणी देखने को क्यो नही मिलती - जिसमे बाबा का गुणगान व इतिहास लिखा हो ?
(3) उनके समकालीन किसी भी चारण भाट कवि ने बाबा की महिमा बखाण / छन्द क्यों नही रचै ?
(4) बाबा रामदेव जी ने अपनै समकालीन किसी भी राव राजा की सॅगति नही की - ऐसा सभी इतिहासकारो का मानना है - मगर इसके पिछै मुख्य क्या कारण रहै होंगे ? यह उजागर होना चाहिए ।
(5) बाबा रामदेव के समाधी काल विक्रम सॅवत 1442 से करीब 1745 तक (कुल 303 साल ) के अन्तराल मे किसी भक्त कवि द्वारा उनकी कोई महिमा गाथा देखने को क्यों नही मिलती ?
(6) बाबा रामदेव के समाधि लेने के करीब 303 बाद --: केवल 1745 के बाद हुऐ हरजी भाटी के रचित काव्यो मे रामदेवजी द्वारा उन्हें साक्षात प्रकट होकर दर्शन देने की बाते देखने को मिलती है - इसी तरह उनके समकालीन व उनके बाद हुऐ कंई भक्त कवियों की रचनाओं मे भी लगभग सभी को बाबा के प्रकट होकर उन भक्त कवियों को बढचढ के दर्शन देने वाली चमत्कारी बातै उजागर होती है --- जिन्है जन मानस मे आज भी खुब बढचढ कर गाया जाता है -- मगर यह कोई विचार नही करता कि -- बाबा ने समाधि के बाद 300 साल तक किसी को प्रकट होकर दर्शन क्यों नही दियै ?
क्या उन 300 सालों मे बाबा रामदेव प्रसिद्ध नही थे ?---
ओर तीन सो साल के उस अन्तराल मे उनका कोई सवर्ण भक्त कवि देखने को क्यो नही मिलता ?
(7) सॅवत14 वी से 17वी शताब्दी के बीच यह महत्वपूर्ण विचारणिय बिन्दू है कि -उन तीन सो साल के अन्तराल मे लोकमान्यतानुसार जन मानस मे प्रसिद्ध एकमात्र "बाबे रा रिखिया" कहै जाने वालै पिछड़ै शोषित मेघवाल समाज के अनपढ़ लोगों ने अब तक पीढीदर पीढी मोखिक गायन परम्परा से बाबा रामदेव के क्रान्तिकारी अमर व्यक्तित्व व उनकी आध्यात्मिक लोक धारा को कैसे जिवॅत बनायै रखा -इस पर कोई इतिहासकार विचार तक नही करता - आखिर ऐसा क्यों ?
(8) अनुप सॅस्कृत लाईब्रेरी बिकानेर मे सुरक्षित रामदेवजी से सम्बधित कुछ हस्तलिखित वारताऐ है - वह भी केवल विक्रम सॅवत 18 शताब्दी के लगभग बाद के ही है --- तो विचारणीय है कि बाबा रामदेव के समयकाल 14 वी से 17वी शताब्दी तक ऐसी हस्तलिखित वारताऐ क्यों नही लिखी गयी ?
(9) रामदेवरा की परचा बावड़ी के शिलालेखो के आधार पर उसका निर्माण भी विक्रम सॅवत 1897 मे धामट गोत्र के पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा करवाया गया --- उससे पहलै यहाँ किसी सवर्ण जाति लोगो ने वहा ऐसा जनकल्याणार्थ कार्य क्यो नही करवाये ?
(10) बाबा की समाधि से करीब 500 साल बाद यह देखने को मिलता है कि - बिकानेर के महाराजा गॅगासिह जी ने सॅवत 1985 मे बाबा की समाधि धाम का पुनः जिर्णोद्धार व नविन पोल इत्यादी का निर्माण करवाया - मगर खेद है कि उन्होंने डालीबाई की समाधि पर बनी पुरानी छत्री पर कोई मरमत कार्य तक नही करवाया - आखिर ऐसा क्यों ?
गॅगासिह जी से पुर्व किसी भी राजा ने वहा कोई निर्माण तक नही करवाया - क्यों ?
(11) बाबा रामदेव के भक्त कवियों द्वारा रचै गयै भजनों मे एक ओर महत्वपूर्ण विचारणिय तथ्य सहज ही उजागर होता कि - बाबा रामदेव के जीवन काल मे दियै गयै कॅई चमत्कार / परचो को गाया जाता है , ओर फिर 17 वी शताब्दी के बाद कॅई भक्तों को प्रकट होकर दर्शन दैने वालै कंई चमत्कार सुनने को मिलतै है - यहाँ विचारणीय यह है कि उन 300 के अन्तराल मे हुआ कोई चमत्कार किसी कथा वाणी मे सुननै को क्यो नही मिलता - क्या उन 300 साल मे कोई चमत्कार नही हुआ ? -----
इन्हीं विचारणीय बातों के साथ ही साथ - यह भी सर्वविदित है कि पुर्वकाल मे बाबा रामदेव से सम्बधित कॅई प्रसिद्ध ओखाणे / कहावतै भी प्रसिद्ध थी - जो कि यह स्पष्ट रुप से मनुवादी जातपात की सॅकीर्ण ओछी मानसिकता का परिचायक है जो इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि पुर्वकाल मे मनुलादी उची जाति के सवर्ण लोग रामदेव जी के अनुयायी बनना भी पसॅद नही करतै थे । - इसिलियै तो उनकी जुबान पर सदेव -" रामदेव जी ने मिलिया सो ढेड ढेड " व केवल -"ढेडो रो देव- रामदेव" के ओखाणे जिवॅत थे जो स्पष्ट रुप से अब तक कॅई इतिहासकारो ने खुलकर उजागर कियै - मगर उनके पिछै छिपे रहस्यो को उजागर करने की बजाय खेद है कि वे ज्यादातर लोग उन्है केवल द्वारकाधीश कृष्ण के अवतारी पालणे मे प्रकट - के रुप मे ही पूजना ओर पुजवाना चाहतै है --- लेकिन वही ओखाणे इस बात का को सुलझाने मे परम सहायक ठोस प्रमाण है कि बाबा रामदेव के समकालीन किसी भी इतिहास मे उनका इतिहास क्यों नही लिखा । - ओर उनके 300 साल बाद तक वही ओखाणे प्रसिद्ध रहै जिनकी वजह से ये उपरोक्त विचारणीय विषय बिन्दू आज भी हमारै सामने पहेली बनकर खड़ै है - जिसे अनदेखा करके जो लोग केवल मनोकल्पित /मनमाने इतिहास लिखतै जा रहै है वो सरासर गलत है ।
इस तरह अब तक की शोध यात्रा मे हमने देखा कि - केवल 17 वी शताब्दी के बाद हुऐ कंई भक्त कवियों के मनोकल्पित भजन वाणी वार्ताओं के आधार पर ही जो लोग रामदेव जी का इतिहास व लोक साहित्य लिखतै जा रहै है - उनसै पूर्व के उपरोक्त महत्वपूर्ण विचारणिय बिन्दुओ के रहस्योद्घाटन करने का अगर कोई साहस भी करता है - उसै कितना विरोध झैलना पड़ता है - यह तो उन्है सहज ही मालुम पड़ जायैगा जो इन बातों को ध्यान मे रखकर इतिहास लिखेगा ।
फिर भी हम तो बाबा के सभी परम भक्तों ओर नविन शोधकर्ता - इतिहासकारो / पत्रकार व प्रबुद्ध पाठको ओर कविजनो से विनम्र करबद्ध यही निवेदन करतै है कि - सत्य परेशान हो सकता है मगर पराजित नही ।
अतः - मात्र 17 वी शताब्दी तक के ही लोक साहित्य का संकलन करके जिन्होंने अब तक - बाबा रामदेव इतिहास व साहित्य लिखे है - वो न्याय के तराजु से कोसो दूर है । क्यों कि उन्है 14 वी शताब्दी तक समुची शोध यात्रा सम्पन्न करनी चाहिए - अन्यथा वह इतिहास ही अधुरा ही कहलायेगा ।
जय मेघ सायर सुत्त रामसापीर की - जै डालीबाई री
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