मारवाड़ का अमर शहीद "मेघवीर "राजाराम जी कडेला मेघवाल पिता मोहणसी जी व माता का नाम केसर जिन्होंने 12 मई 1459 वार शनिवार जोधपुर किले की नींव मे बलिदान दिया|
" दियो ब-ितसो राजाराम ,जद मण्डियो मेहराण |
उचनीत रै कारणै, ना राख्यो नाम निशाण ||
ना राख्यो नाम निशाण, जोधाणो बेरंग लागे |
ना छतरी ना मूरत ज्यारी, गढ मेहराणे आगे ||
रणबेंका राठोेैड क्यू , भूल्या थे अहसाण |
दियो ब-तीसो राजाराम, जद मण्डियो मेहराण ||
शेर नर राजाराम मेघवाल भी जोधपुर नरेशो के हित के लिए बलिदान हो गए थे
!मोर की पुंछ के आकर !वाले जोधपुर किले की नीव जब सिंध के ब्राह्मण ज्योतिषी गनपत
ने राव जोधाजी के हाथ से वि ० स० 1516 में रखवाई गई तब उस नीव में मेघवंशी राजाराम
जेठ सुदी 11 शनिवार (इ ० सन 1459 दिनाक 12 मई ) को जीवित चुने गए क्यों की राजपूतो
में यह एक विश्वास चला आ रहा था की यदि किले की नीव में कोई जीवित पुरुष गाडा जाये
तो वह किला उनके बनाने वालो के अधिकार में सदा अभय रहेगा !इसी विचार से किले की
नीव में राजाराम (राजिया )गोत्र कडेला मेघवंशी को जीवित गाडा गया था ! उसके उअपर
खजाना और नक्कार खाने की इमारते बनी हुई हैं ,इनके साथ गोरा बाई
सती हुई थी !राजिया के सहर्ष किये हुए आत्म त्याग एवम स्वामी भक्ति की एवज में राव
जोधाजी राठोड ने उनके वंशजो को जोधपुर किले पास सूरसागर में कुछ भूमि भी दी जो राज
बाग के नाम से प्रसिद्ध हैं !और होली के त्यौहार पर मेघवालो की गेर को किले में
गाजे बजे साथ जाने का अधिकार हैं जो अन्य किसी जाती को नही हैं !परन्तु उस वीर के
आदर्श बलिदान के सामने यह रियायते कुछ भी नही हैं !
कंही -कंही राजिया और कालिया दो पुरुषो को नीव में जीवित गाड़े जाने
का वर्तान्त भी लिखा मिलता हैं जो दोनों ही मेघवाल जाती के थे !
इस अपूर्व त्याग के कारण राज्य की और से प्रकाशित हुई कई हिंदी और
अंग्रेजी पुस्तको में राजिया भाम्बी के नाम का उल्लेख श्रदा के साथ किया हैं !
आज से लगभग 135 वर्ष पहले इ ० सन 1874 (विक्रम संवत 1931 )में जोधपुर
राज्य ने "THI JODHPUR FORT "नाम की अंग्रेजी पुस्तिका प्रकाशित की थी ,उनके पेज 1 पंक्ति
12 में अमर शहीद राजाराम मेघवंशी (भाम्बी )के आदर्श त्याग के विषय में यह लिखा हैं
:-
-------------"its (Jodhpur )foundation was laid in 1459 A.D. when a
man "bhambi rajiya "was interred alive in tha foundeto invoke good
fortuneon its defenders and to ensurs its imprognabilityt
"............"(vide "tha jodhpur for"page 1 line 12 frist
edition ,1874 A.D.published by jodhpur state )
अर्थात ........इस किले (जोधपुर गढ़ ) की नीव इ ० सन 1459 (विक्रम
संवत 1516 )में रखी थी तब एक राजिया भाम्बी (मेघवंशी)इस किले के स्थायित्व के लिए
जीवित इसकी नीव में चुना गया )
वि ०स ० 1946 फाल्गुन सुदी 3 शनिवार( इ ०सन 1890 तारीख 22 फरवरी )को
इंग्लेंड के ,राजकुमार प्रिंस एल्बर्ट विकटर ऑफ़ वेल्स ,भारत यात्रा करते
जोधपुर तब स्टेट की और से "गाइड टु जोधपुर "(जोधपुर पथ प्रदर्शक )नाम की
अंग्रेजी पुस्तक प्रकाशित हुई !उसके पृष्ठ 7 में राजाराम के लिए छपा
:-.......................................
"......."tha fort (jodhpur)...............when tha foundation
was laid ,aman rajiya bhambi by name ,was interred alive ,as an ausppicious
omen,in a corner over which were built two apartments now occupied by tha
treasury and tha nakar khana (country band) .in consideration of this sacrfice
,rao jodha bestowed a piece of land "raj bai bag"near sursagar,on tha
desendants of tha deceased and exempted them from "begar"or forced
lebour .........("vide guide to jodhpur 1890 A<D<page 7 published by
tha order of H.H. tha maharaja jaswant singh G.C.S.I.,and maharaj dhiraj col
.sir pratap singh K.C.S.I.&c. jodhpur on tha auspicious of tha visit his
royal highness tha prince albert victor of wales. 1890 A.D. page 7)
अर्थात .................जब जोधपुर दुर्ग की नीव (इ ० सन 1459 में
)रखी गई तब शुभ सगुन तथा उसके स्थायित्व के लिए राजिया भाम्बी नाम का पुरुष उसमे
जिन्दा चुना गया !जन्हा पर खजाना और नक्कारखाना की इमारते बनी हुई हैं !इस
क़ुरबानी के लिए राव जोधा ने उसके वंशधरो को कुछ भूमि सूरसागर (जोधपुर )के पास
"राजबाग"नाम से इनायत की और उन्हें नि:शुल्क सेवा से बरी कर दिया
!"
इ ० सन 1900 (वि ० स ० 1957 ) में राजपुताना के सर्जन लेफ्टिनेन्ट
कर्नल डाक्टर एडम्स आई ० ऍम ० एस०; ऍम ० डी ०
(इत्यादी)जोधपुर ने "दी वेस्टर्न राजपुताना स्टेट "नाम का अंग्रेजी में
सचित्र इतिहास लन्दन में छाप कर पुन :प्रकाशित ! उसके पृष्ठ 81 में भी राजाराम के
त्याग का उल्लेख हैं !
इस तरह से तत्कालीन जोधपुरस्टेट द्वारा प्रकाशित कई पुस्तको में
राजाराम मेघवाल (राजिया)के बलिदान का उल्लेख मिलता हैं.

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