अक्षय तृतीया के अवसर पर शादियों की सीजन है और गाँव-गाँव खुशियों का
माहौल है. वर्तमान परिपेक्ष्य में ग्रामीण लोगों में भी फैशन की ओर रुची भी बढ़ी
है. महंगे जेवरात, कपड़े और सामान के अलावा शादी के कार्ड तक की डिजाईन के प्रति भी
लोगों का नजरिया बदला है. शादी के कार्ड की बात की जाये तो जहाँ पहले शादी के
कार्डों पर देवी-देवताओं के फोटो हुआ करते थे वही अनुसूचित जातियों में जाग्रति के
चलते उनके महापुरुषों की और झुकाव बढ़ा है जिससे प्रमुख
व्यक्तित्वों ने शादियों के कार्ड में भी जगह बना ली है. इन सभी मे आधुनिक भारत के
पिता कहे जाने वाले भारत रत्न डॉ बाबा साहेब का फोटो सबसे आगे है. अनुसूचित जातियो
की शादियों के जो कार्ड छपे है उन पर बाबा साहेब का फोटो लगाये जा रहे है, जो यह
साबित करता है की अब वे इतने जागरूक हो चुके है की समझ सकते है उन महापुरुषों का
उनके इस सुखी जीवन में कितना योगदान है.
हमारा अतीत बहुत ही गौरवशाली रहा है । मेघवाल क्षत्रियोत्पन्न हिंदू-धर्म की एक जाति नहीं है बल्कि मेघवंश क्षत्रिय वंश रहा है ! हड़प्पा कालीन सभ्यता के उत्खनन में पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हो चुके हैं कि मेघवाल ही पुराप्रागैतिहासिक काल में शासक(क्षत्रिय) थे ! विस्मित न हो , आर्यों नें उन्हें पराजित किया और उनके सब राजसी ठाट-बाट और वैभव छीन लिए । बुरा हो उन आर्यों का , जिन्होंने हमें क्षुद्र-वर्ण में धकेल दिया ! हमारी हीनता की जड़ें हमें हिंदू धर्म में विलीन करने की प्रक्रिया में सन्निहित रही है। इस प्रकार सर्वप्रथम मेघवाल ही क्षत्रिय थे ! मेघवालों के बाद ये तथाकथित ‘ क्षत्रिय ’ अस्तित्व में आए । चूँकि ‘ बाप ही बेटों से बड़ा और महान् होता है ’ अत: हमारे पूर्वज (वर्तमान सन्दर्भ मेंहम ) इन तथाकथित ‘ क्षत्रियों ’ से महान् माने जाएँगे ! अत: समस्त धर्म हमारे ही ‘ वंशजों ’ द्वारा उत्पन्न हुए हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं ! यदि कनिष्क वासुदेव , मिनांडर , भद्र मेघ , शिव मेघ , वासिठ मेघ आदि पुरातात्विक अभिलेखांकन व मुद्राएँ न मिलतीं , तो इतनी अत्यल्प ज...
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