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हमारी तो ABCD ही अम्बेडकर से शुरू होती है .... एक श्रदांजली जरुर पढ़े

सफ़र की बात है इंसानियत चलते चलते वर्तमान तक आ पहुंची. सदियाँ बित जाये मगर कुछ निशान ऐसे होते है जिन्हें जमाना भूल नही पाता. आज ऐसे ही एक शख्स को दुनिया भर में नम आँखों से याद किया जा रहा है. वैसे तो उसके अहसान हम सब पर है मगर कुछ अहसान फ़रामोश भी है जिनकी खानदानी आदतें उनसे छोड़ी नही जाती. दुनिया का वो कीमती शख्स जिसे पाकर शिक्षा खुद पर नाज करती है. जिसे विश्व ज्ञान का प्रतिक कहा गया. जिसे ना ज्यादा किताबों में पढाया गया, जिसे ना गीतों में गाया गया मगर फिर वो दिलों में ऐसे राज करता है जैसे कहीं साथ ही पला-बढ़ा हो. हम बात कर रहे है महामानव, विश्व ज्ञान के प्रतिक बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की. आज 6 दिसंबर को उनका महापरिनिर्वाण दिवस है. आज ही के दिन सन 1956 को वो हमारे लिए बहुत कुछ छोड़कर भी हमें अकेला कर गये. ऐसा नही था की उनको केवल जानकारों ने याद किया बल्कि पूरे भारतवर्ष के लाखों-करोड़ों लोगों की अंतरआत्माएं चीख-चीख कर रो रही थी. इंसानियत को मानने वाला वो हर व्यक्ति जिसने उन्हें जान लिया उनका हो गया, उसे फिर किसी तरह का बंधन बांध नही सका. अम्बेडकर की क्षमता के आगे इ...
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ऐसे पिता को दिल से सलाम

ये है मासूम सोनिया। खुश है। विक्ट्री साइन बना रही हैं । यह विक्ट्री साइन है एक बेटी का अपने पिता के लिए लिंगानुपात के मामले में चुरु जिले की सबसे पिछड़ी तहसील राजगढ़ के गांव कालाना ताल के अनपढ़ कृष्ण मेघवाल ने आज उन तुच्छ मानसिकता वाले लोगों को आइना दिखाया है, जो बेटियों के साथ भेदभाव करते हैं। कृष्ण एक दिहाड़ी मजदूर है, आज से 8 वर्ष पहले उसके घर में सोनिया का जन्म हुआ । बेटी के बड़ा होने पर पिता कृष्ण ने महसूस किया क़ि सोनिया सामान्य बच्चों की तरह ना तो खेल पाती है ,ना ही उसका विकास हो रहा है क्योंकि वह हृदय की जन्मजात बीमारी से ग्रसित थी।  राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की टीम के राजकीय विद्यालय कालना पहुँचने पर इस बच्ची को यह बीमारी होने का पता चला! इस बच्ची का 1.5 लाख का निःशुल्क ऑपरेशन rbsk में सम्भव था किन्तु जयपुर में प्रतीक्षा सूची लम्बी थी ,ऊपर से कृष्ण प्रतिदिन राजगढ़ आकर भवन निर्माण की दिहाड़ी करके अपना गुजारा करता था | परन्तु आज से 2 माह पूर्व ही कृष्ण ने ठान लिया कि वह बच्ची का तत्काल ऑपरेशन करवाकर ही रहेगा । तब मेरे निवेदन पर SDM राजगढ़ ने इस परिवार को भामाशाह स्वा...

मिशाल :- बिमला मेघवाल ने अस्पताल के लिए दान दे दी अपनी जमीन

शेखावाटी अंचली के कांवट कस्बे में एक महिला ने गरीबों के लिए अपनी जमीन दे दी। वजह उनका सही और अच्छी जगह इलाज होना। कस्बे की इस महिला को जब पीएचसी की जर्जर हालत के चलते यहां आ रहे मरीजों की हालत पता चली तो उनसे रहा न गया और उन्होंने अपनी पांच बीघा जमीन अस्पताल बनाने के लिए दे दी। कांवट के निकटवर्ती गांव भादवाड़ी निवासी गरीब परिवार की एक महिला ने सरकारी अस्पताल को अपनी 5 बीघा जमीन दान कर अनूठी मिसाल कायम की है। भादवाड़ी गांव में फिलहाल पीएचसी का संचालन हो रहा है। अस्पताल का भवन काफी जर्जर है , जहां स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं नहीं हैं। खासकर महिलाओं को प्रसव के लिए दूसरे अस्पतालों में जाना पड़ता है। अव्यवस्थाओं की वजह से रात में डॉक्टर भी अस्पताल में नहीं रुकते हैं। ईंट-भट्टों पर मजदूरी करता है परिवार 55 साल की बिमला देवी के चार बेटे व दो बेटियां हैं। इनके तीन बेटे दूसरे राज्यों में मार्बल का काम करते हैं। ईंट-भट्टों पर मजदूरी करने वाली बिमला फिलहाल नरेगा में काम कर रही है।   हर किसी ने सराहा गरीबों की पीड़ा को देखते हुए मेघवाल समुदाय की बिमला देवी पत्नी जगदीश ...

मेघवालों का गौरवशाली इतिहास यहाँ पढ़े

हमारा अतीत बहुत ही गौरवशाली रहा है । मेघवाल क्षत्रियोत्पन्न हिंदू-धर्म की एक जाति   नहीं   है बल्कि मेघवंश क्षत्रिय वंश रहा है ! हड़प्पा कालीन सभ्यता के उत्खनन में पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हो चुके हैं कि मेघवाल ही पुराप्रागैतिहासिक काल में शासक(क्षत्रिय) थे !   विस्मित न हो , आर्यों नें उन्हें पराजित किया और उनके सब राजसी ठाट-बाट और वैभव छीन लिए । बुरा हो उन आर्यों का , जिन्होंने हमें क्षुद्र-वर्ण में धकेल दिया ! हमारी हीनता की जड़ें हमें हिंदू धर्म में विलीन करने की प्रक्रिया में सन्निहित रही है। इस प्रकार सर्वप्रथम मेघवाल ही क्षत्रिय थे ! मेघवालों के बाद ये तथाकथित ‘ क्षत्रिय ’ अस्तित्व में आए । चूँकि ‘ बाप ही बेटों से बड़ा और महान् होता है ’ अत: हमारे पूर्वज (वर्तमान सन्दर्भ मेंहम ) इन तथाकथित ‘ क्षत्रियों ’ से महान् माने जाएँगे ! अत: समस्त धर्म हमारे ही ‘ वंशजों ’ द्वारा उत्पन्न हुए हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं ! यदि कनिष्क वासुदेव ,  मिनांडर ,  भद्र मेघ ,  शिव मेघ , वासिठ मेघ आदि पुरातात्विक अभिलेखांकन व मुद्राएँ न मिलतीं ,  तो इतनी अत्यल्प ज...

ताराराम गौतम- संघर्ष का दूसरा नाम

द्वितीय विश्व युद्ध ( 1939-1945) में पराधीन भारत में ब्रिटिश भारतीय सेना में बतौर एक   सैनिक के रूप में बर्मा कैम्पेन में भाग लेकर राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र के श्री धर्माजी मेघ 23 अप्रैल 1947 को सेवा निवृत होकर वापस आये और पाली देवी से विवाह किया। उनके घर में चौथी संतान के रूप में श्री ताराराम जी का जन्म हुआ। धर्माजी के परिवार के लोग सामंतशाही और बेगारी के विरुद्ध संघर्षरत रहे। धर्माजी का शिक्षा के प्रति बहुत लगाव था। अतः उन्होंने अपनी संतान को पढाने का संकल्प लिया और पुत्र ताराराम को उच्च   शिक्षा दिलाई। श्री ताराराम जी की स्कूली शिक्षा ग्रामीण क्षेत्र में हुई। वे बचपन से ही होनहार और प्रतिभाशाली थे। अपनी कक्षा में हमेशा अव्वल रहते। सह शैक्षिक गतिविधियों में भी आपका योगदान उल्लेखनीय रहा। विद्यार्थी जीवन में स्काउट गाइड और एनसीसी के प्रतिभागी रहे। हाई स्कूल में वे तहसील स्तर पर प्रथम रहे। उन्हें जिलाधीश कार्यालय द्वारा 500/ रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया। एक सैनिक का पुत्र होने के नाते सरकार से उन्हें सैनिक छात्रवृति भी मिलती रही। तत्कालीन जोधपुर विश...